Wednesday, October 5, 2011

दादी की आँखें



दादी की आँखें
लिये हुए ममता का भण्डार
जब देखती है हमारी ओर
आँखें दादी की
लगता है कि अब भी सार्थकता
है हमारे जीवन में
लिये हुए एक प्यारा डर
कि हम फिर गिर न जायें
लगता है अब भी कोई चिन्तित
हमारे वजूद के लिये
जब निहारती हैं दादी की आँखें
लगता है जैसे
सारा संसार दे रहा है आशीष
उन आँखों के रास्ते
लगता है अब भी है
हमारे साथ के लिये
हमारे भलाई के लिये
एक टक निहारती है
जाब जाते हम परदेश
पूछती है पुचकरते हुए
कब लौटोगे फ़िर
आँखें सुनाती है लोरियाँ,
गाती हैं गुनगुनाती हैं,
कि फ़िर हम चैन की नींद सोए.
गाती है सोहर फ़िर
को कोई नया जीवन
जन्मे और पुकारे उस बूढ़ी देह को
जिसने बनाया कितनों को मजबूत
देखता नहीं अब कोई इन आँखों में
फ़ुर्सत नहीं अब किसी को
इन बूढ़ी-मरती आँखों मे झाँकने की
जब ये आँखें उठती है तो उठता है
एक आशीर्वाद से भरा हाथ
फ़िर से सिर पे फ़ेरने के लिए
कि कोई नजर न लग जाए हमें
किसी गलत नजर की
इन आँखों मे झाँकने की जरूरत है अब
कि ये हँसती हैं हमारी खुशी में
हमारे दुख के साथ रोती हैं
बस जरूरत है एक बार प्यार से पलटने की
फ़िर जिन्दा हो जायेगी ये
हमे खुश रखने की कोशिश में
क्योंकि ये माँगती नहीं कुछ
होती है देने को तैयार हमेशा हमें
खुशियाँ, आशीर्वाद, दुआएँ और प्यार.

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