Monday, June 12, 2017

नही आएगा डाकिया



घर के आंगन वाले पेड़ से
तोड़ के कुछ कच्चे पक्के आम
बैठ जाते है बाबा सड़क के किनारे
बेच कर
चलाते है गुजारा
आधे भरे पेट से जूझते है रोज
बचपन मे रोपा था एक गुठली
पत्नी के छत्तीस महीनों के कष्ट से
चार बच्चे थे उनके
अब साथ नही रहते वो
बड़े हो जाने के बाद
उस पेड़ की तरह
जड़े नही जमी थी जमीन से
महीने के आखरी तारिक पे आते है मिलने
सब एक साथ
सरकार की तरफ से मिलता है
बृद्धा पेंशन
एक दिन खुशहाली पसरती है उनके यहां
जब लाता है डंकिया मनीऑर्डर
फिर से पुरे महीने
बस होते है बूढ़े बाबा और आम का पेड़
बाबा अपनी सारी तकलीफे
कह देते है उस पेड़ के कान में
चुपके से
चुप, सुन लेता था वह पेड़
हल्का हो जाता है मन बूढ़े बाबा का थोड़ा
बनी रहती है जिजीविषा
उम्र के इस पड़ाव में भी
दिखे नही लाचार, बच्चो को
सुना है अंधी बहुत तेज आयी थी कल रात
शायद वो पेड़ उखड़ गया है
और बच्चे चिंतित है कि अगले महीने
से नही आएगा डाकिया .....

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